बुधवार, 25 मार्च 2009

कीर्ति आजाद (जैसा की अमित पाण्डेय को बताया )
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आडवाणी जी के बारे में कुछ कहना सूरज के दिया दिखाने जैसा होगा। एक बहुत अच्छे नरम दिल इंसान हैं, जिनमें किसी तरह का कोई घमंड या प्रपंच नहीं है। और यह सिर्फ उनमें ही नहीं, उनके पूरे परिवार में दिखता है। आडवाणी जी एक बहुत ही सशक्त और काबिल प्रशासक, राजनीतिग्य हैं। लेकिन उतने ही नरम दिल इंसान हैं।
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बोले कि मैं आपका फैन हूं
मैं जब पहली बार आडवाणी जी से मिला था तो, यह बात है, मेरा विवाह हुआ था ३० अप्रैल १९८६ को। और फिर मेरा रिसेप्शन हुआ था कास्टीट्यूशन क्लब में, ५ मई को। तब माननीय आडवाणी जी से पहल बार मिला था और जयंत भी साथ में आए थे। वहीं शर्मिला अंदाज। आए और मुझसे मिले और इतना बड़ा व्यक्तित्व और मुझसे आकर कहे कि मैंने आपका वह डे-नाईट मैंच देखा था और बोले कि मैं आपका फैन हूं। मेरे पास तो, मेरे पास तो जुबान नहीं थी कि मैं क्या कहता। वह बहुत ही सरल और नरम स्वभाव के व्यक्ति हैं, लेकिन एक बहुत ही कड़े और कुशल प्रशासक भी हैं।
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तन समर्पित, मन समर्पित
मैंने एक जगह पढ़ा था कि जब पहली बार सरकार बनी थी जनता पार्टी की तब इनसे मिलने के लिए कोई पत्रकार गए हुए थे। आडवाणी जी को बाहर आने में थोड़ा देर हो गया। तो उन्होंने पत्रकार से माफी मांगते हुए यह कहा कि कल मुझे शपथ लेने के लिए सुबह जाना है और मेरे पास केवल दो जोड़ी कपड़े हैं। एक जोड़ी कपड़े को मैं धो रहा था इसके कारण से मुझे आपसे मिलने में विलंभ हुआ है। यह एक व्यक्ति के चरित्र को दर्शाता है कि वह कितना सीधा और सरल स्वभाव का है। राजनीति को एक समर्पित भाव से, जनता को ही जनार्धन समझ कर लिया है।
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सबको नाम से पुकारते हैं
लगभग ८५ से ९० प्रतिशत लोगों को वह नाम से जानते हैं। भीड़ में खड़ा कोई भी व्यक्ति हो, वह उसे नाम से पहनाते हैं। यह एक इंसान के बड़क्कपन की सबसे बड़ी निशानी होती है कि अगर कोई किसी व्यक्ति से एक बार मिला हो और दो साल बाद मिले और उस व्यक्ति को नाम से पुकारना और जानना, यह आजकल के कई नेताऒं में देखने को नहीं मिलता है। आडवाणी जी कि ऐसी ही काबिलियत उन्हें बाकी सबसे अलग बना देती है।किसी भी विषय पर आप उनके साथ विचार-विमर्श कर सकते हैं और हर एक विषय पर उनको ग्यान है। और वह एक दोस्त की तरह सलाह देते हैं, मदद करते हैं।
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अटल जी का साथ
अटल जी और आडवाणी जी की जोड़ी राम और लक्ष्मण जैसी है। जनता पार्टी के टूटने के बाद जब भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था, उस समय अटल जी और आडवाणी जी लंब्रेटा स्कूटर से जा रहे थे और आडवाणी जी ने उन्हें भरोसा दिलाया कि कल फिर सुबह होगी। यह उनकी उन दोनों की जोड़ी का ही कमाल था कि सुबह भी हुई और कमल भी खिला। वह छोटी से छोटी बातों को याद रखते हैं और भविष्य की पूरी योजना उनके मन में स्पष्ट रहती है।
(कीर्ति आजाद दरभंगा से भाजपा के सांसद हैं और इस बार भी पार्टी के प्रत्याशी हैं। वे जाने माने क्रिकेट खिलाड़ी हैं और १९८४ में नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में पाकिस्तान के खिलाफ खेली गई ७१ रनों की आतिशी बल्लेबाजी के लिए खास तौर से जाने जाते हैं।)